Sunday, October 30, 2011

कम है बस यही बड़ा ग़म है





कितना भी सोचूं तो कम है





माँ को किस रूप में कहूँ, या मैं सुनूँ या मैं देखू





सब कम है कितना कम है !बस कम ही कम है





जितना तुम पास नही उतना ही कम है





ये मन का चैन उतना ही कम है





रिश्तों में कम है वादों में कम है





गर तू नही तो मैं ही कुछ कम है





हम में कुछ कम है





दिल में कुछ कम है





जग में सब कम है





उड़ तो गए तेरे बिन ,पर ही पर कम है





सब चेहरे है पर एक नज़र कम है





माँ तू जो नही तो मेरा अक्स कम है





हर तरह ,हर जगह, हर गली, हर मंजिल कम है





अब आजा माँ मुझमे तेरी बेटी कम है

Thursday, December 30, 2010

अनमोल अहसास


पाकर उसको अपनी बाँहों में,

ऐसा लगा मेरा सपना पूरा हुआ,

वही सपना जो मेरी माँ ने मेरे लिए बुना था,

उसको सहेज कर अपनी गोद में,

ऐसा लगा मेरी धरोहर पूरी हुई,

जो विरासत हर स्त्री संजोती है ,

कितना अनोखा है ये अहसास,

कितना सुखद है ये पल,

जब आँखों से ममता बरसती है,

पूरी ज़िन्दगी उस पल बदलती है,

ये वो सबसे बड़ा चमत्कार है जब,

हमारे सामने हमारा ही एक रूप जन्मता है,

कितना सुन्दर लगता है अपने बचपन को फिर से जीना,

अपने बच्चे के साथ बच्चा बनाना,

बड़ा सुन्दर लगता है अपनी छवि अपनी बाँहों में देखना......

Saturday, September 18, 2010

बेटी से माँ तक....


कहते है कि ज़िन्दगी निरंतर रूप बदलती रहती है इसके साथ हमारे रिश्ते,हमारी भूमिका भी बदलती रहती है। बच्चे माँ -बाप के लिए सदा प्रिय होते है।माँ का आंचल प्राय तो बाप का साया अगर हवा है तो पिता पानी ,जिसके बिना हम ज्यादा देर जिंदा नही रह सकते। दोनों की तुलना करना कठिन है। दोनों असीम प्यार और सम्मान के अधिकारी है।
जब एक लड़की माँ-पा के घर जन्म लेती है तभी से उसका भविष्य लिख दिया जाता है कि एक दिन इसको दुसरे के घर जाना है। थोडा बड़ा होते ही उसके खेल-खिलौने, रहन-सहन,पहनावा,सब बदल जाता है। माँ पिता जी से ज्यादा पास-पड़ोस के लोग लड़की पर ज्यादा नज़र रखते है।
हम तो बात कर रहे थे बेटी से माँ तक के सफ़र की।बेटी क्यों माँ बाप को अच्छे से जान पाती है क्योंकि एक दिन वो भी माँ बनती है।
जब कभी हम माँ से लड़ते झगड़ते थे तो बड़ी आसानी से कुछ भी कह देते थे। कहने से पहले सोचते भी नही थे कि माँ को बुरा लगेगा। पर आज समझ पाते है कि हमे माँ को कुछ भी कहने का हक नही है। कितनी मुश्किलों और परेशानियों से गुजरते हुए वो हमको नौ महीने अपने पेट में रखती है। वो भी किसी मजबूरी से नही बल्कि ख़ुशी ख़ुशी.......
आज हम बता सकते है कि माँ बनना कोई आसान काम नही है। जिस दिन से बच्चा पेट में अपना घर बनाता है माँ को हर पल उसका ही ख्याल रखना होता है। कभी वो बड़ी खुश होती है तो कभी बहुत दुखी। शारीरिक और मानसिक परेशानियाँ कम नही होती।
मातृत्व के विषय पर लिखते हुए फ्रांस कि प्रसिद्ध लेखिका सीमोन दा बौअवर ने लिखा है कि ''भ्रूण एक परजीवी होता है जो माँ के शरीर से अपना भरण- पोषण करता है।उसका माँ से अलग कोई अस्तिव नही होता है। उसकी एक एक साँस माँ पर निर्भर रहती है। पर जन्म के बाद माँ उसके भाग्य और कर्मों की निर्धारण नही कर सकती। बच्चा का माँ से बिलकुल अलग अस्तित्व होता है। ''
अगर माँ ने अपनी इच्छा से गर्भधारण नही किया है तो उसको ज्यादा मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी माँ अपने गर्भ को अपने मुंह से उलट देना चाहती है। उसको अपने बच्चे के लिए ज्यादा लगाव नही हो पाता पर जन्म के बाद स्वयं ही ममता आ जाती है बच्चे के प्रति।
इसके विपरीत स्त्री जब अपनी इच्छा से माँ बनती है तो पहले ही दिन से उसको ज्ञात हो जाता है कि कोई उसके शरीर में आ गया है जो उसके साथ साँस ले रहा है। चौथे महीने से ही उसको पता चलने लगता है कि जैसे कोई तितली(butterfly) जैसी कोई चीज़ पेट में मूव कर रही है,बड़ा ही प्यारा अहसास होता है जो शब्दों से बयां नही किया जा सकता है । हाँ वैसे ६ महीने से ही बच्चे के मूवमेंट पता चलते है। इसके बाद तो वो उसके सोने और जागने की अवस्था बता सकती है। उसके सर और पैर को फील कर सकती है।
माँ की भूमिका तो डे फर्स्ट से ही शुरू हो जाती है। शारीरिक और मानसिक दुर्बलताओं के साथ किसी जीव का निर्माण करना इतना अद्भुत है कि माँ भी नही जानती कि वो प्रकृति का कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।
गर्भावस्था कोई आसान प्रक्रिया नही है। हार्मोंस के बदलावों के कारण माँ को बहुत प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। उस समय सबके साथ होते हुए भी खुद को अकेला पाती है। भावनात्मक और मानसिक रूप से माँ बहुत कमज़ोर हो जाती है। मूड हर पल छिन बदलता रहता है। मन कभी भय से कभी ख़ुशी से भरा रहता है।
माँ बच्चे को अपने अन्दर ऐसे रखती जैसे सीप में मोती।वो एक एक दिन इस मोती के बाहर आने का इंतजार करती है। इन नौ महीने में उसकी दिनचर्या,खान-पान,और इच्छाएं आवश्कताएं सब बदल जाती है
माँ बच्चे के लिए संजीवनी है। माँ बच्चे को unconditional love करती है ।माँ तो वृंदा है। इसीलिए माँ का दर्जा भगवान् के सामान है। भले ही पूजा पाढ़ न करो पर माँ के दर्शन ज़रूर करना चाहिए। आगे का अनुभव फिर बताएँगे .....तब तक के लिए माँ को नमन!

Friday, April 23, 2010

हमारी किस्मत में प्यार कहाँ!!!!!


बेटी बनकर आई हूँ मैं माँबाप के जीवन में

बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में ,

क्यों ये रीत खुदा ने बनाई होगी,


कहते है आज नही तो कल बेटी तू पराई होगी,


देकर जनम पाल पोसकर जिसने हमे बड़ा किया ,


और एक वक़्त उन्ही हाथों ने हमे विदा किया ,


एक पल को नही सोचते अरे ! हमने ये क्या किया ,


टूट के बिखर जाती है हमारी ज़िन्दगी वहीँ ,


फिर भी उस बंधन में प्यार मिले ये ज़रूरी तो नही ,


क्यूँ ये रिश्ता हम बेटियों का अजीब होता है ,


क्या बस यही हम बेटियों का नसीब होता है !!!!!!!!!!!!!



Thursday, March 11, 2010

यादों के सफ़र से


खवाबो में डूबी ये चाहत हमारी
यादों में बिखरी है खुशबू तुम्हारी
तेरे इश्क से हम वफ़ा मंगाते है
ज़माने से प्यारी मोहब्बत हमारी

कभी दो पल जीये जो बाँहों में तुम्हारी
वही ज़िन्दगी की नियामत हमारी
बड़ी दूर तक माँगा था साथ तेरा
ना जाने कैसे छूटी यारी हमारी


तेरे होठों से जीया था सूकून ज़िन्दगी का
सांसों से बंधी थी डोरी हमारी
तेरे सीने से लग कर धड़कन मिली थी
अब न तुम हो न सूकून है न धड़कन हमारी
वक़्त ने मिटा दी जरुरत तुम्हारी।

Monday, November 30, 2009

डोंट रिअक्ट !


पापा कहते है कि सहन करना सीखो। ज़िन्दगी में दया, क्षमा , प्रेम और परोपकार के सिवाय कुछ नही है। पापा कहते है कि एक बात हमेशा याद रखो अंग्रेज़ी में है पर बड़ी सटीक है "Dont react "। आप कोई भी काम करो, कुछ भी सुनो, कुछ भी देखो पर डोंट रेअक्ट। आपको पता है पहले हम सोचते थे कि क्या पापा क्या कहते रहते है!! पर आज इन दो वर्ड का मतलब समझ आ गया है। सच है अगर हम इनको अपने जीवन में अपना ले तो ज़िन्दगी को बड़े बिंदास तरीके से जी सकते है। अच्छा मान लो कोई आपकी तारीफ कर रहा है तो आप का मन ख़ुशी के मारे उछलने लगता है जैसे हम भी कुछ है । पर जब भी कोई आलोचना करता है या बुराई करता है तो फिर हम मायूस या उदास होते है। हम दोनों स्थिति में प्रतिक्रिया कर रहे होते है । बड़ी सीधी बात है कि जब हम प्रतिक्रिया करते है तो जान लीजिये कि कहीं हम अपने जीवन में तारतम्य बैठा नही पा रहे है। न्यूटन का गति का 3 नियम (Newton's laws of motion- 3 law known as action reaction) 'क्रिया प्रतिक्रिया ' के बिलकुल विपरीत है डोंट रिअक्ट । न्यूटन का नियम तो सार्वभौमिक नियम है । पर हमें तो डोंट रिअक्ट को अपनाना है। तभी हम अपनी सार्थक ऊर्जा को सही दिशा सही लक्ष्य पाने में लगा सकते। मान लीजिये कि हम भोजन कर रहे है और खाना बड़ा स्वादिष्ट है तो हम भूख से ज्यादा ग्रहण करते है।जानते है क्यों ? क्योकि भोजन हम के प्रति प्रतिक्रिया रहे है। यह हमारे मन में वासना को जन्म देती है ,फिर लालच ,लोभ बढ़ता है सब जानते कि लालच ही दुर्गुणों का आश्रय होता है। क्यों साधू संत लोग संयमित होते है क्योकि वो जीवन की सब घटनाओ को सम भाव से लेते है वो किसी बात से विचलित नही होते है। हम सोचते है की संतो के पास शक्ति होती है। पर साधू सिर्फ अपने मन को रिअक्ट करने से रोक लेते है। कहते है कि 'स्थूल इतना बुरा नही है जितना कि सूक्ष्म गूढ़ है हमारी प्रतिक्रियां सूक्ष्म मन का भाव होती हैं , जिन पर काबू पाना कठिन होता है ।पर ज्यादा कठिन भी नही होता है बस हम रिअक्ट करना छोड़ दे किसी भी बात के लिए । जीवन के हर पहलू पर हम ये नियम लगा ले तो हम ज्यादा सार्थक जीवन जी सकते है। अज्ञानी मनुष्य अपने जीवन में तीन चीजों को पाना चाहता है
१-यश
२-धन
३- वासना
ये तीनों चीज़ें हमारे सूक्ष्म मन कि प्रतिक्रियाएं है जो दूसरों को देखकर हम भी पाना चाहते है। मन में तन की भूख , यश की भूख , धन की भूख हमेशा बनी रहती क्योकि हमारा मन इनके प्रति प्रतिक्रिया करता रहता है। जिस दिन हमारा मन इनके लिए रिअक्ट करना बंद कर दे उस दिन हम अपने दुर्गुणों पर विजय पा लेंगे । और एक सफल जीवन जी पाएंगे। कितना भी कठिन समय हो बस मन में एक ही भाव होना चाहिए। तो आज से हमारा मंत्र होगा -

Don't React !

Friday, November 20, 2009

माँ आप आ गई.....


पता है माँ ज़िन्दगी में एक अनमोल ज़रूरत है। इस बात को हमने हमेशा महसूस किया है। कल जब माँ पापा इलाहाबाद से आए तो मन को लगा आज बड़ा सुकून मिल गया है। पापा बाहर ही मिल गए और बोले "मेरी बिटिया आ गई "। माँ के कमरे का दरवाजा खोलते ही माँ का चहेरा देखा तो लगा इश्वर के दर्शन हो गए। माँ के पैरो को जब हमने छुआ तो लगा आत्मा को स्वर्ग मिल गया है। मन कर रहा था की माँ के पैरो में सर रखकर हमेशा के लिए सो जाए। जल्दी से कपड़े बदल कर माँ के पास गए तो देखा सिकंदर भैय्या माँ के पैर दबा रहे थे। हमने कहा भैय्या आप हटो हमको दबाने दो। माँ के पैरो को जब मेरे हाथ छू रहे थे तो लगता था की मेरा रोम-रोम कृतज्ञ महसूस कर रहा था माँ का। पता है हमारी दोनो माँ हमे २ जुलाई को मिली थी। एक माँ ने हमको जन्म दिया २ जुलाई को, दूसरी माँ ने २ जुलाई को ही हमको अपनाया था। २ जुलाई २००८ को हमने अपनी दूसरी माँ को पहली बार देखा था। माँ उस दिन हमसे कुछ बोली नही थी सिर्फ़ मेरी माँ से कहा की ज्योति को हमे दे दो। माँ मेरी शादी के pahale से ही घर आती थी, माँ जब भी shopping करने जाती थी हमको ले कर जाती थी। बोलती थी जल्दी तैयार हो चलना है। tab फिर क्या मैं कपड़े खोजना शुरू करती थी की क्या पहने क्योंकि मेरे पास एक भी सूट नही थे सब tom boy की तरह कपड़े थे मेरे पास। बस मेरे बाल लंबे थे इसलिए मैं लड़की लगती थी। माँ पापा pareshan होते थे की क्या होगा इस लड़की का। पर अब हमने अपने आप को बदल लिया है। अब कोई कह नही सकता है की यह वही ज्योति है। हाँ हम बात कर रहे थे माँ के बारे में कल रात को घर में आया देखा और दिल बोला "माँ आप आ गई हम कितने अकेले हो गए थे "। पता है मेरी माँ बड़ी भोली है, बड़ी प्यारी है, उन्हें सबका दर्द पता है , सबकी परेशानी समझ आती। वो किसी के आंसू नही देख सकती है उन्होंने हमको ऐसे अपनाया है की हमे कभी माँ की कमी खली नही। हाँ उन माँ की याद आती ज़रूर है पर उनकी कमी खलती नही है। सच में कभी लगता है हम बहुत सौभाग्यशाली हूँ। हमें नही लगता की हम माँ के बिना रह पाएंगे। कल रात में हम ऐसे सोये की एक सपने ने भी हमारी पलकों पर दस्तक तक नही दी। बिल्कुल निश्चिन्त होकर सो गए। सुबह उठे माँ के पास गए उनका प्यारा चेहरा देखा तो दिल ने तेज़ धडकनों के साथ कहा "माँ आप आ गई है अब जाना मत"। पर कल (रविवार) को माँ को वापस जाना है इलाहाबाद। आगे हम कुछ नही कह पा रहे है क्योकि आंख भर आई है।