Thursday, December 30, 2010

अनमोल अहसास


पाकर उसको अपनी बाँहों में,

ऐसा लगा मेरा सपना पूरा हुआ,

वही सपना जो मेरी माँ ने मेरे लिए बुना था,

उसको सहेज कर अपनी गोद में,

ऐसा लगा मेरी धरोहर पूरी हुई,

जो विरासत हर स्त्री संजोती है ,

कितना अनोखा है ये अहसास,

कितना सुखद है ये पल,

जब आँखों से ममता बरसती है,

पूरी ज़िन्दगी उस पल बदलती है,

ये वो सबसे बड़ा चमत्कार है जब,

हमारे सामने हमारा ही एक रूप जन्मता है,

कितना सुन्दर लगता है अपने बचपन को फिर से जीना,

अपने बच्चे के साथ बच्चा बनाना,

बड़ा सुन्दर लगता है अपनी छवि अपनी बाँहों में देखना......

Saturday, September 18, 2010

बेटी से माँ तक....


कहते है कि ज़िन्दगी निरंतर रूप बदलती रहती है इसके साथ हमारे रिश्ते,हमारी भूमिका भी बदलती रहती है। बच्चे माँ -बाप के लिए सदा प्रिय होते है।माँ का आंचल प्राय तो बाप का साया अगर हवा है तो पिता पानी ,जिसके बिना हम ज्यादा देर जिंदा नही रह सकते। दोनों की तुलना करना कठिन है। दोनों असीम प्यार और सम्मान के अधिकारी है।
जब एक लड़की माँ-पा के घर जन्म लेती है तभी से उसका भविष्य लिख दिया जाता है कि एक दिन इसको दुसरे के घर जाना है। थोडा बड़ा होते ही उसके खेल-खिलौने, रहन-सहन,पहनावा,सब बदल जाता है। माँ पिता जी से ज्यादा पास-पड़ोस के लोग लड़की पर ज्यादा नज़र रखते है।
हम तो बात कर रहे थे बेटी से माँ तक के सफ़र की।बेटी क्यों माँ बाप को अच्छे से जान पाती है क्योंकि एक दिन वो भी माँ बनती है।
जब कभी हम माँ से लड़ते झगड़ते थे तो बड़ी आसानी से कुछ भी कह देते थे। कहने से पहले सोचते भी नही थे कि माँ को बुरा लगेगा। पर आज समझ पाते है कि हमे माँ को कुछ भी कहने का हक नही है। कितनी मुश्किलों और परेशानियों से गुजरते हुए वो हमको नौ महीने अपने पेट में रखती है। वो भी किसी मजबूरी से नही बल्कि ख़ुशी ख़ुशी.......
आज हम बता सकते है कि माँ बनना कोई आसान काम नही है। जिस दिन से बच्चा पेट में अपना घर बनाता है माँ को हर पल उसका ही ख्याल रखना होता है। कभी वो बड़ी खुश होती है तो कभी बहुत दुखी। शारीरिक और मानसिक परेशानियाँ कम नही होती।
मातृत्व के विषय पर लिखते हुए फ्रांस कि प्रसिद्ध लेखिका सीमोन दा बौअवर ने लिखा है कि ''भ्रूण एक परजीवी होता है जो माँ के शरीर से अपना भरण- पोषण करता है।उसका माँ से अलग कोई अस्तिव नही होता है। उसकी एक एक साँस माँ पर निर्भर रहती है। पर जन्म के बाद माँ उसके भाग्य और कर्मों की निर्धारण नही कर सकती। बच्चा का माँ से बिलकुल अलग अस्तित्व होता है। ''
अगर माँ ने अपनी इच्छा से गर्भधारण नही किया है तो उसको ज्यादा मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी माँ अपने गर्भ को अपने मुंह से उलट देना चाहती है। उसको अपने बच्चे के लिए ज्यादा लगाव नही हो पाता पर जन्म के बाद स्वयं ही ममता आ जाती है बच्चे के प्रति।
इसके विपरीत स्त्री जब अपनी इच्छा से माँ बनती है तो पहले ही दिन से उसको ज्ञात हो जाता है कि कोई उसके शरीर में आ गया है जो उसके साथ साँस ले रहा है। चौथे महीने से ही उसको पता चलने लगता है कि जैसे कोई तितली(butterfly) जैसी कोई चीज़ पेट में मूव कर रही है,बड़ा ही प्यारा अहसास होता है जो शब्दों से बयां नही किया जा सकता है । हाँ वैसे ६ महीने से ही बच्चे के मूवमेंट पता चलते है। इसके बाद तो वो उसके सोने और जागने की अवस्था बता सकती है। उसके सर और पैर को फील कर सकती है।
माँ की भूमिका तो डे फर्स्ट से ही शुरू हो जाती है। शारीरिक और मानसिक दुर्बलताओं के साथ किसी जीव का निर्माण करना इतना अद्भुत है कि माँ भी नही जानती कि वो प्रकृति का कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।
गर्भावस्था कोई आसान प्रक्रिया नही है। हार्मोंस के बदलावों के कारण माँ को बहुत प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। उस समय सबके साथ होते हुए भी खुद को अकेला पाती है। भावनात्मक और मानसिक रूप से माँ बहुत कमज़ोर हो जाती है। मूड हर पल छिन बदलता रहता है। मन कभी भय से कभी ख़ुशी से भरा रहता है।
माँ बच्चे को अपने अन्दर ऐसे रखती जैसे सीप में मोती।वो एक एक दिन इस मोती के बाहर आने का इंतजार करती है। इन नौ महीने में उसकी दिनचर्या,खान-पान,और इच्छाएं आवश्कताएं सब बदल जाती है
माँ बच्चे के लिए संजीवनी है। माँ बच्चे को unconditional love करती है ।माँ तो वृंदा है। इसीलिए माँ का दर्जा भगवान् के सामान है। भले ही पूजा पाढ़ न करो पर माँ के दर्शन ज़रूर करना चाहिए। आगे का अनुभव फिर बताएँगे .....तब तक के लिए माँ को नमन!

Friday, April 23, 2010

हमारी किस्मत में प्यार कहाँ!!!!!


बेटी बनकर आई हूँ मैं माँबाप के जीवन में

बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में ,

क्यों ये रीत खुदा ने बनाई होगी,


कहते है आज नही तो कल बेटी तू पराई होगी,


देकर जनम पाल पोसकर जिसने हमे बड़ा किया ,


और एक वक़्त उन्ही हाथों ने हमे विदा किया ,


एक पल को नही सोचते अरे ! हमने ये क्या किया ,


टूट के बिखर जाती है हमारी ज़िन्दगी वहीँ ,


फिर भी उस बंधन में प्यार मिले ये ज़रूरी तो नही ,


क्यूँ ये रिश्ता हम बेटियों का अजीब होता है ,


क्या बस यही हम बेटियों का नसीब होता है !!!!!!!!!!!!!



Thursday, March 11, 2010

यादों के सफ़र से


खवाबो में डूबी ये चाहत हमारी
यादों में बिखरी है खुशबू तुम्हारी
तेरे इश्क से हम वफ़ा मंगाते है
ज़माने से प्यारी मोहब्बत हमारी

कभी दो पल जीये जो बाँहों में तुम्हारी
वही ज़िन्दगी की नियामत हमारी
बड़ी दूर तक माँगा था साथ तेरा
ना जाने कैसे छूटी यारी हमारी


तेरे होठों से जीया था सूकून ज़िन्दगी का
सांसों से बंधी थी डोरी हमारी
तेरे सीने से लग कर धड़कन मिली थी
अब न तुम हो न सूकून है न धड़कन हमारी
वक़्त ने मिटा दी जरुरत तुम्हारी।