Thursday, March 11, 2010

यादों के सफ़र से


खवाबो में डूबी ये चाहत हमारी
यादों में बिखरी है खुशबू तुम्हारी
तेरे इश्क से हम वफ़ा मंगाते है
ज़माने से प्यारी मोहब्बत हमारी

कभी दो पल जीये जो बाँहों में तुम्हारी
वही ज़िन्दगी की नियामत हमारी
बड़ी दूर तक माँगा था साथ तेरा
ना जाने कैसे छूटी यारी हमारी


तेरे होठों से जीया था सूकून ज़िन्दगी का
सांसों से बंधी थी डोरी हमारी
तेरे सीने से लग कर धड़कन मिली थी
अब न तुम हो न सूकून है न धड़कन हमारी
वक़्त ने मिटा दी जरुरत तुम्हारी।

2 comments:

  1. bahut dinon baad likha aapne ...written beautifully..
    "वक़्त ने मिटा दी जरुरत तुम्हारी "..this is amazing...

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  2. कभी दो पल जीये जो बाँहों में तुम्हारी
    वही ज़िन्दगी की नियामत हमारी
    यही दो पल तो सारी जिन्दगी का सार है
    सुन्दर रचना

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