कितना भी सोचूं तो कम है
माँ को किस रूप में कहूँ, या मैं सुनूँ या मैं देखू
सब कम है कितना कम है !बस कम ही कम है
जितना तुम पास नही उतना ही कम है
ये मन का चैन उतना ही कम है
रिश्तों में कम है वादों में कम है
गर तू नही तो मैं ही कुछ कम है
हम में कुछ कम है
दिल में कुछ कम है
जग में सब कम है
उड़ तो गए तेरे बिन ,पर ही पर कम है
सब चेहरे है पर एक नज़र कम है
माँ तू जो नही तो मेरा अक्स कम है
हर तरह ,हर जगह, हर गली, हर मंजिल कम है
अब आजा माँ मुझमे तेरी बेटी कम है
अब आजा माँ मुझमे तेरी बेटी कम है..
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... गहरा विचार
क्या बात है, बहुत सुंदर
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